वारसदार#माझ्या कविता

                                   वारसदार 
आश्रमाच्या दारावर 
उभी राहिली गाडी
त्यातून उतरल्या बाई 
सावरत आपली साडी 
                               (आश्रमाचे संचालक ..........) 
परवाच एक मूल गेलं
काल परत एक आलं
मिळेल वेळ हवा तेवढा 
आवडेल तो निवडा 
काही होते खेळत
काही होते रडत 
एक होता काळा
दुसरा होता भोळा
एक होता रड्या 
दुसरा होता जाड्या 
एक होते गोबरे 
दुसरे होते तोबरे 
एक होते नकटे 
दुसरे होते धाकटे 
एक होते घारे 
दुसरे होते गोरे 
एक होते शेमडे
दुसरे होते चोमडे 
एक होते सुरूप 
एक होते कुरूप 
(बाई आपल्या नवऱ्यास................)
पाहिली मुले सारी 
पण लागली नाही प्यारी 
वेळ माझा फुकट गेला 
लवकर दुसरीकडे चला 
(आश्रमाचे संचालक ....................)
थांबा थांबा हो बाई 
नका करू इतकी घाई 
टाकलेली पोर सारी 
वाटतील कशी प्यारी 
छत नाही म्हणून अनाथ ही
भासेत्यांना संध्या प्रभातही 
                              आवड निवड कसली यात 
                                द्या एकास ममतेचा हात 
                            द्या एकास ममतेचा हात

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